शुक्रवार, 23 नवंबर 2007

हाय ये सीरियल ! ! !


आज से लगभग तीस वर्ष पूर्व दूरदर्शन पर 'हम लोग' के प्रसारण से भारत में सीरियलों का प्रारम्भ हुआ । 'हम लोग' , 'बुनियाद' , 'नुक्कड़' इत्यादि में उस समय के भारतीय समाज के सहज से लगने वाले पात्र, उनके मानवीय गुणों और उनके जीवन से जुड़ी समस्याओं का वास्तविक सा चित्रण था । इस वजह से सारा परिवार एक साथ बैठकर इन सीरियलों का आनन्द लेता था ।
केबिल टीवी के आगमन के कुछ वर्षों बाद तक भी कुछ अच्छे ऐतिहासिक एवं सामाजिक सीरियल देखने को मिलते रहे । आज से लगभग छह-सात वर्ष पूर्व अवतरण हुआ एकता कपूर की बालाजी टेली फिल्मस के कभी न समाप्त होने वाले मेगा-सीरियलों का । इन सीरियलों में समाज के उच्च-प्रतिष्ठित बहुसदस्यीय परिवारों का जो चित्रण है वह निहायत ही अजीब और विकृतियों से भरा है ।
ये परिवार आज के इस युग में एक संयुक्त परिवार के रूप में रहते हैं जो अपने आप में एक आश्चर्य से कम नहीं । यूँ तो ये परिवार संस्कारी एवं परम्पराओं का सम्मान करने वाले कहलाते हैं परंतु स्वयं अपने घर में ही वे इन संस्कारों की कैसे धज्जियाँ उड़ाते हैं यह देखते ही बनता है । इस सबके कुछ उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं कृपया गौर फरमाएँ :
1. बेटियाँ विवाह के पश्चात भी अपने पति के घर न रहकर अपने बच्चों समेत अपने मायके में पड़ी रहती हैं और अपनी भाभियों तथा घर के अन्य सदस्यों के विरुद्ध षडयंत्र रचती रहती हैं और उनके संस्कारी माँ-बाप, दादा-दादी व अन्य बड़े मूक दर्शक बने देखते रहते हैं ।
2. पोते-पोतियाँ विवाह के पश्चात भी अपने दादा-दादी से बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं जबकि उनके माता-पिता का अपने बड़ों से व्यवहार निकृष्ट स्तर का होता है ।
3. लड़कियाँ लड़कों को मनुष्य नहीं वरन खेलने की वस्तु समझती हैं और उन्हें 'हासिल' करने के लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती हैं ।
4. महिलाओं के पास करने के लिये कुछ नहीं होता सिवाय घर व रिश्ते की अन्य महिलाओं को नीचा दिखाने एवं उनके खिलाफ षडयंत्र रचने के ।
5. माताएं अपनी पुत्रियों को अपने पतियों को उंगलियों पर नचाने और पति के परिवार को तोड़ने एवं उनकी सम्पत्ति हथियाने के विषय में सलाह देती रहती हैं ।
6. अधिकतर पात्रों के लिये धन-सम्पत्ति ही सब कुछ होती है और उसके लिये वे सभी मानवीय मूल्यों को ताक पर रख देने एवं एक दूसरे की जान लेने को तत्पर रहते हैं । 7. लगभग सभी पात्र उच्च-शिक्षित होते हुए भी आपस में जोर-जोर से चिल्लाकर बात करते हैं ।
उपरोक्त उदाहरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि ये सीरियल यह दर्शाना चाहते हैं कि समाज में मानवीय मूल्यों का कोई महत्व नहीं है वरन धन-सम्पत्ति ही सर्वोपरि है ।
इस प्रकार के चरित्र-चित्रण से समाज पर, विशेषकर महिलाओं एवं बच्चों पर कितना बुरा असर पड़ सकता है यह आज देखा जा सकता है ।
सीरियल निर्माताओं से विनम्र अनुरोध है कि वे ऐसे सीरियलों का निर्माण करें जो केवल उच्च वर्ग के घृणित पक्ष को ही न दिखाएं वरन उनमें समाज के उज्जवल पक्षों एवं मानवीय-मूल्यों का अधिकाधिक चित्रण हो और साथ ही साथ वे शिक्षाप्रद भी हों ।
साथ ही बुद्धजीवियों का भी यह कर्तव्य है कि वे इन सीरियलों के माध्यम से समाज में फैलायी जा रही विकृत सोच की कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करें ।

बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

मेरे सपनों का विकसित राष्ट्र - भारत

आज हम सभी प्रत्येक क्षेत्र में हो रही भारत की प्रगति से भली-भॉंति परिचित हैं । अनेकों भारतीयों का यह स्वप्न है कि हमारा देश ऐक विकसित राष्ट्र बने । परंतु क्या सिर्फ आर्थिक एवं वैज्ञानिक प्रगति को ही विकास मान लेना उचित है ? क्या जातिवाद, समाज के कमजोर वर्गों के शोषण, पुलिस की बर्बरता, नारी जाति के प्रति असमान व्यवहार,मानवीय मूल्यों के ह्रास जैसी सामाजिक बुराइयों के रहते हम विकसित राष्ट्र कहलाने लायक हैं?

भारत आज सूचना प्रौद्योगिकी के विकास में अग्रणी भूमिका निभा रहा है परंतु हमारे अपने देश में इसका प्रसार सिर्फ कुछ नगरों तक ही सीमित है । आज घरेलू एवम औद्योगिक उपयोग की लगभग हर मशीन हमारे देश में उपलब्ध है परंतु उसके परिचालन के लिये आवश्यक विद्युत का उत्पादन हम नहीं कर पा रहे हैं । आज उच्चतम तकनीक के बेहतरीन वाहनों का उत्पादन हमारे देश में होता है परन्तु हमारे देश की अधिकांश सड़कें जर्जर अवस्था में हैं । आज भी स्वच्छ पेयजल,शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं के लिये करोड़ों देशवासी तरसते हैं । विकास की योजनाएं केवल घोषणाएं बनकर रह गयी हैं ।

विकास की धारा सभी तक पहुँचे इसके लिये हमें तेजी से बढ़ती जनसँख्या पर नियंत्रण करना होगा अन्यथा संसाधनों की कमी,बेरोज़गारी एवम आवासीय तथा कृषि योग्य भूमि की कमी जैसी समस्याओं से पार पाना असम्भव सा हो जायेगा । जनसँख्या नियंत्रण से ही नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि सम्भव है ।
इस प्रकार की चुनौतियों का सामना हमें प्राथमिकता से करना होगा तभी हम सही मायनों में एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे ।

मेरा सपना एक ऐसे विकसित भारत का है जो आर्थिक एवं वैज्ञानिक रूप से सक्षम तथा आध्यात्मिक एवम मानवीय मूल्यों से युक्त हो और जहाँ विकास जन-जन तक पहुँचे । देशवासी ईमानदार, शिक्षित, स्वस्थ, आत्मनिर्भर एवं योग्य हों तथा मानव जीवन मूल्यवान हो ।

साधुवाद

हिन्दी पत्रिका कादम्बनी के अक्तूबर-2007 अंक से अपना हिन्दी-ब्लॉग प्रारंभ करने की प्रेरणा मिली सो आज बैठकर ब्लॉग बनाया । हिन्दी में लिखने और उसे लोगों तक पहुंचाने के इस माध्यम की जानकारी देने के लिये कादम्बिनी को शत-शत साधुवाद ।