बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

मेरे सपनों का विकसित राष्ट्र - भारत

आज हम सभी प्रत्येक क्षेत्र में हो रही भारत की प्रगति से भली-भॉंति परिचित हैं । अनेकों भारतीयों का यह स्वप्न है कि हमारा देश ऐक विकसित राष्ट्र बने । परंतु क्या सिर्फ आर्थिक एवं वैज्ञानिक प्रगति को ही विकास मान लेना उचित है ? क्या जातिवाद, समाज के कमजोर वर्गों के शोषण, पुलिस की बर्बरता, नारी जाति के प्रति असमान व्यवहार,मानवीय मूल्यों के ह्रास जैसी सामाजिक बुराइयों के रहते हम विकसित राष्ट्र कहलाने लायक हैं?

भारत आज सूचना प्रौद्योगिकी के विकास में अग्रणी भूमिका निभा रहा है परंतु हमारे अपने देश में इसका प्रसार सिर्फ कुछ नगरों तक ही सीमित है । आज घरेलू एवम औद्योगिक उपयोग की लगभग हर मशीन हमारे देश में उपलब्ध है परंतु उसके परिचालन के लिये आवश्यक विद्युत का उत्पादन हम नहीं कर पा रहे हैं । आज उच्चतम तकनीक के बेहतरीन वाहनों का उत्पादन हमारे देश में होता है परन्तु हमारे देश की अधिकांश सड़कें जर्जर अवस्था में हैं । आज भी स्वच्छ पेयजल,शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं के लिये करोड़ों देशवासी तरसते हैं । विकास की योजनाएं केवल घोषणाएं बनकर रह गयी हैं ।

विकास की धारा सभी तक पहुँचे इसके लिये हमें तेजी से बढ़ती जनसँख्या पर नियंत्रण करना होगा अन्यथा संसाधनों की कमी,बेरोज़गारी एवम आवासीय तथा कृषि योग्य भूमि की कमी जैसी समस्याओं से पार पाना असम्भव सा हो जायेगा । जनसँख्या नियंत्रण से ही नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि सम्भव है ।
इस प्रकार की चुनौतियों का सामना हमें प्राथमिकता से करना होगा तभी हम सही मायनों में एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे ।

मेरा सपना एक ऐसे विकसित भारत का है जो आर्थिक एवं वैज्ञानिक रूप से सक्षम तथा आध्यात्मिक एवम मानवीय मूल्यों से युक्त हो और जहाँ विकास जन-जन तक पहुँचे । देशवासी ईमानदार, शिक्षित, स्वस्थ, आत्मनिर्भर एवं योग्य हों तथा मानव जीवन मूल्यवान हो ।

साधुवाद

हिन्दी पत्रिका कादम्बनी के अक्तूबर-2007 अंक से अपना हिन्दी-ब्लॉग प्रारंभ करने की प्रेरणा मिली सो आज बैठकर ब्लॉग बनाया । हिन्दी में लिखने और उसे लोगों तक पहुंचाने के इस माध्यम की जानकारी देने के लिये कादम्बिनी को शत-शत साधुवाद ।