बुधवार, 16 जनवरी 2008

क्या किसी व्यक्ति को 'मंकी' कहना नस्लभेद है ?

अरे भई !  हरभजन के एंडृयू साइमंड्स को कथित रूप से 'मंकी' कहने पर इतना बवाल हुआ कि समूचे देश में और क्रिकेट खेलने वाले कुछ अन्य देशों में हाहाकार सा मच गया । न्यूज़-चैनलों व अन्य मीडिया को आगामी कुछ दिनों के लिये ख़ासा मसाला भी मिल गया ।

जो बात मैदान पर ही या मैदान के बाहर आपस में बातचीत से सुलझायी जा सकती थी उस पर मैच-रेफ़री माइक प्राक्टर की अदालत में छः घंटे तक माथापच्ची करने के बाद जो फैसला आया उसे 'भद्र पुरुषों' के खेल के लिये कलंक कहना उचित होगा ।

दरअसल तथाकथित 'गोरे' देशों के खिलाड़ी क्रिकेट को अपनी बपौती समझते हैं और अन्य देशों के खिलाड़ियों को हेय दृष्टि से देखते हैं । वे अपने अहम की तुष्टि के लिये मैदान पर अक्सर छींटाकशी एवं गाली-गलौज करते रहते हैं परंतु यदि विपक्षी खिलाड़ी पलटकर जवाब दे तो तिलमिला जाते हैं और इसे खेल-भावना के विरुद्ध बताकर दंड देने की माँग करते हैं।

अभी तक का क्रिकेट-इतिहास ऎसा ही रहा है । यह शायद पहली बार है कि उन्हें इस तरह के मामले में विपक्षी दल के जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा है ।

मैदान पर होने वाली साधारण सी छींटाकशी की घटना को तूल देकर नस्लभेद का रंग दे देना निहायत शर्मनाक है और इसका ज़ोरदार विरोध होना ही चाहिये ।

अंत में इस घटना पर एक हल्का-फुल्का नज़रिया : 

पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी माइकल होल्डिंग का इस घटना पर बयान - 'मंकी' शब्द को नस्लभेद का नाम देना ग़लत है क्योंकि हमारे पूर्वज बन्दर ही थे ।

होल्डिंग के इस बयान पर एक भारतीय की टिप्पणी - 'मंकी' शब्द हमारे लिये नस्लभेदी भले न हो परंतु 'कंगारुओं' के लिये तो है ही ।